नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आप सभी का आज की एक और नई ब्लॉग पोस्ट में। तो दोस्तों आप सभी यह तो जानते ही है कि Linux कितना ज्यादा secure, और सिंपल है लेकिन क्या आप जानते है कि यह इतना ज्यादा secure और सिंपल क्यों है। तो इसकी बजह है इसमें काम करने वाले इसके 5 महत्वपूर्ण कंपोनेंट्स। तो आज की इस ब्लॉग पोस्ट में हम बात करने वाले है इसके आर्किटेक्टर की (Architecture of Linux in Hindi) इसमें Linux के वे पांच कंपोनेंट्स मौजूद है जो इसे इतना ज्यादा मजबूत, आसान और सुरक्षित बनाते है।
तो चलिए शुरू करते है और जानते है लिनक्स के आर्किटेक्चर (Architecture of Linux in Hindi) के वारे में!’
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Architecture of Linux in Hindi – (लिनक्स का आर्किटेक्चर)
Linux एक इस तरह का ऑपरेटिंग सिस्टम होता है जो अपनी ताकत, सुरक्षा और flexibility के लिए जाना जाता है। यह एक Open Source ऑपरेटिंग सिस्टम है यानि इसका यह मतलब है कि इसको आप फ्री में किसी भी तरह उपयोग कर सकते हो और अपनी जरूरत के हिसाब से उसे customize भी कर सकते हो।
आज Linux इतना ज्यादा smooth तरीके से काम करने में सक्षम हो पाया है तो इसके पीछे इसमें उपस्थित इसके कुछ महत्वपूर्ण और जरूरी parts होते हैं, जिनको हम Components के नाम से जानते है। ये सभी पार्ट्स एक साथ मिलकर पूरे सिस्टम को अच्छे से चलने में सहायता करते है।
तो चलिए शुरू करते है और जानते है Linux के वे कौन से मुख्य Parts है जो इसके Architecture को इतना स्ट्रांग बनाते है और साथ ही यह भी जानेंगे की यह काम कैसे करते है:
1. Kernel (कर्नेल)
कर्नेल जो है उसको हम Linux ऑपरेटिंग सिस्टम का “दिल” कह सकते है। कर्नल लिनक्स का वो हिस्सा होता है जो डायरेक्ट कंप्यूटर के हार्डवेयर जैसे CPU, मेमोरी, I/O डिवाइसेज़ आदि से डायरेक्ट जुड़ा हुआ होता है और फिर सबकुछ खुद कण्ट्रोल करता है।
जब भी हम अपने सिस्टम पर किसी तरह के एप्लिकेशन या फिर इंटरनेट का उपयोग करते है जैसे किसी फ़ाइल को पढ़ना या फिर किसी तरह के डेटा को भेजना, तो वह प्रोग्राम कभी भी सीधे हार्डवेयर से कॉन्टेक्ट नहीं कर पाता है। यानि यूजर और सिस्टम दोनों के बीच हमेशा Kernel उपस्थित होता है जो सब कुछ संभालता है।
What does the kernel do in Hindi? – (कर्नेल क्या-क्या करता है?)
- CPU और मेमोरी का सही तरीके से बराबर बंटवारा करता है।
- हम सब जानते है की सिस्टम में एक साथ कई सारे प्रोग्राम चलते है तो यह उन सभी को अलग – अलग करके एक – दूसरे को आपस में टकराने से रोकता है।
- हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों के बीच एक पुल (Bridge) की तरह काम करता है।
Types of Kernels in Hindi – (कर्नेल के प्रकार)
- Monolithic
- Micro Kernel
- Hybrid
- Exo Kernel
2. System Libraries (सिस्टम लाइब्रेरी)
Linux में System Libraries वो फाइलें होती हैं जिनमें पहले से लिखा हुआ कोड मौजूद होता है। जब भी कोई प्रोग्राम कंप्यूटर स्यतेम से किसी तरह का कोई काम करवाना चाहता है जैसे किसी फाइल को खोलना, डाटा को सेव करना या फिर किसी मेमोरी का इस्तेमाल करना आदि जैसे कामो को करने के लिए नई कोडिंग करने की जगह वो इन पहले से बानी हुई Libraries का ही उपयोग करता है।
यानि, System Libraries जो है वह कंप्यूटर पर होने वाले कामो को Fast, Simple और कम लोड होने वाला बना देती हैं।
दूसरे सब्दो में कहे तो, System Libraries न होतीं, तो हर बार प्रोग्राम बनाते समय डेवलपर्स को वही पुराना लंबा कोड फिर से लिखना पड़ता जिसके कारन किसी भी प्रोसेस को करने के लिए काफी ज्यादा समय लगता। Libraries की वजह से प्रोग्राम काफी ज्यादा छोटा, तेज़ और आसान बन जाता है।
उदहारण:
जिस तरह हम अपने स्कूल या collage में अपनी सब्जेक्ट्स की Notes बना लेते हैं ताकि हर बार हमें अपनी पूरी किताब न पढ़नी पड़े, ठीक उसी तरह ही कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में भी Libraries मौजूद होती हैं ताकि बार – बार एक ही जैसा लंबा कोड लिखने की जरूरत न पड़े। Libraries की वजह से प्रोग्रामिंग का काम काफी ज्यादा तेज़ हो जाता है और सिस्टम पहले से फास्ट चलने लगता है।
Why are system libraries necessary in Hindi? – (System Libraries क्यों जरूरी है?)
- जिस काम को हमें बार – बार दोहराना पड़ता है उन कामो को यह आसान बना देती हैं।
- प्रोग्राम तो काफी ज्यादा छोटा बनता है लेकिन वे बड़े – बड़े काम को करने की क्षमता रखते है।
- इसके उपयोग से डेवलपर्स का काफी ज्यादा समय बचता है और कंप्यूटर का लोड भी काफी हद तक कम हो जाता है।
- इन Libraries में जितने भी प्रोग्राम्स उपस्थित होने है बहुत कम गलतियाँ होती हैं क्योंकि यह Libraries पहले से ही टेस्ट की गई होती हैं।
- अलग – अलग प्रोग्राम एक ही समय पर एक ही Library का उपयोग कर सकते है, जिससे सिस्टम में space की भी काफी बचत होती है।
Most popular library:
glibc (GNU C Library) – यह Linux में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली लाइब्रेरी है, इससे फाइलें पढ़ना, लिखना और मेमोरी का काम किया जाता है।
3. Shell (शेल)
Shell को हम Linux का Translator भी कह सकते हैं। क्योकि जब भी हम इसमें किसी तरह की कोई Command लिखते हैं, तो Shell उसे पढ़ने का काम करता है, उसे समझता है और फिर बाद में कर्नेल तक पहुँचा देता है। इसके बाद जो भी काम होता है वह कर्नेल करता है और फिर रिजल्ट वापस Shell के ज़रिए हमें दिखाता है।
Types of Shells in Hindi – (Shell के प्रकार)
वे शैल ही है जिनकी वजह से Linux आज इतना ज्यादा फेमस है, और इतना ज्यादा उपयोग किया जा रहा है।
- Bash
- Zsh
- Ksh
- Fish
4. Hardware Layer (हार्डवेयर लेयर)
अगर हम कंप्यूटर सिस्टम की जड़ो के वारे में बात करें, तो वह हार्डवेयर ही है। यानी आपके कंप्यूटर का CPU, RAM, हार्ड डिस्क, कीबोर्ड और मॉनीटर ये सभी वो असली बेस है जिस पर Linux चलता है।
यूज़र को हमेशा ऐसा महसूस होता है कि पूरे सिस्टम को वे खुद ही चला रहा है, जबकि असल में ये सब कुछ सिस्टम का मैनेजमेंट होता है। इसे ही हम आसान भाषा में Virtualization कहते हैं, जहाँ हर ऐप को ऐसा दिखाया जाता है जैसे पूरा सिस्टम उसी के लिए चल रहा हो।
5. System Utilities (सिस्टम यूटिलिटीज़)
Linux में जो System Utilities है ये सभी वो छोटे – छोटे प्रोग्राम होते हैं, जिनकी सहायता से हम अपने सिस्टम को मैनेज कर पाते हैं जैसे अपने कंप्यूटर सिस्टम में किसी तरह के सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल करना, यूज़र जोड़ना, नेटवर्क सेट करना आदि।
उदहारण:
- अगर आपको अपने सिस्टम में किसी तरह का सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करना है तो उसके लिए apt, yum, dnf आदि टूल्स मौजूद होते है।
- और अगर किसी यूज़र को मैनेज करना है तो उसके लिए adduser, passwd जैसे टूल्स का उपयोग किया जाता है।
- और अगर हमें अपने सिस्टम को मॉनिटर करना है तो उसके लिए top, htop का उपयोग किया जाता है।
Conclusion (निष्कर्ष)
तो दोस्तों, मुझे लगता है की अब तो आप समझ ही गए होंगे की Linux System अलग – अलग हिस्सों से मिलकर चलता है। जैसे कर्नेल का काम होता है सब कुछ कंट्रोल करना, लाइब्रेरीज़ का काम होता है सिस्टम पर होने वाले कामो को जितना हो सके उतना आसान बनाना, शेल हमारी Commands को समझने का काम करती है, और Utilities से हम सिस्टम को मैनेज करते हैं। यही सब मिलकर Linux को एक ताकतवर, भरोसेमंद और flexible ऑपरेटिंग सिस्टम बनाते हैं।
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