नमस्कार दोस्तों, आज की इस ब्लॉग पोस्ट में हम E-Governance के लाइफ साइकिल (Life Cycle of E-Governance in Hindi) के वारे में चर्चा करने वाले है और इसके लाइफ साइकिल की हर एक स्टेप के वारे में भी कुछ चर्चा करेंगे। तो अगर आप भी Life Cycle of E-Governance in Hindi के वारे में जानना चाहते है तो इस ब्लॉग पोस्ट को पूरा जरूर पड़े। तो चलिए शुरू करते है।
E-Governance का मतलब यह होता है की Government की जो भी सेवाएँ और जानकारी है, उसको डिजिटली यानि Information & Communication Technology (ICT) का उपयोग करके आसानी से लोगों तक पहुँचाया जा सके। इसका मुख्य उद्देश्य यह होता है की governance को काफी ज्यादा पारदर्शी (transparent), तेज़, और जनता के लिए आसान बनाना होता है।
Life Cycle of E-Governance in Hindi – (ई-गवर्नेंस का जीवन चक्र)
E-Governance को तैयार करना इतना आसान नहीं है क्योकि इसको बनाने से पहले एक system तैयार किया जाता है लेकिन यह जो system होता है उसे अचानक ऐसे ही नहीं बनाया जा सकता है क्योकि इसे step-by-step develop किया जाता है। ये जो पूरी प्रक्रिया होती है उसको ही हम E-Governance Life Cycle के नाम से जानते है।
इस cycle की सहायता से सरकार को यह तय करने का मौका मिलता है कि government जिस भी service को digital रूप में शुरू करने जा रही है वह कैसे शुरू की जाए, कैसे लागू की जाए, और समय के साथ – साथ उसे किस तरह और भी बेहतर बनाया जाए।
ई-गवर्नेंस का जो Life Cycle है वह एक ऐसी प्रोसेस होती है जिसकी सहायता से किसी भी डिजिटल सर्विस को सही तरीके से और आसानी से तैयार किया जा सकता है, आसानी से चलया जाता है और इसके अलाबा इसकी सहायता से उसमें समय – समय पर सुधार भी किया जा सकता है।
यह जो साइकिल है उसे कई अलग – अलग स्टेप्स में डिवाइड किया जाता है ताकि हर एक स्टेप पर अच्छे से फोकस किया जा सके और जो भी काम करना है उसको सही तरीके से यानि विना किसी समस्या के किया जा सके।
यंहा पर हमने E-Governance लाइफ साइकिल की उन स्टेप्स के वारे में बताया है जो किसी भी डिजिटल सेवा या सर्विस को तैयार करने के लिए की जाती है:
1. Initiation (प्रारंभ)
यह वो Step है जिसमे Government services या फिर योजना की शुरूआत की जाती है, इस स्टेप में Government और जिस योजना को शुरू किया जा रहा है उससे संबंधित Department मिलकर यह तय करते है की वे जिस सर्विस को डिजिटल रूप में शुरू करना चाहते है, उसके लिए किस तरह का डिजिटल प्रोजेक्ट होना चाहिए।
इसके अलावा इस स्टेप में ही E-Governance जिस प्रोजेक्ट को तैयार करने वाली है उसके उद्देश्य और Target तय किए जाते है। साथ ही यह भी तय किया जाता है की अगर बाद में इस प्रोजेक्ट से किसी भी तरह की और कोई भी समस्या होती है, तो उसके लिए किसको जिम्मेदार ठहराया जायेगा।
उदहारण:
भारत सरकार ने Digital India Mission के अंतर्गत कई सारे प्रोजेक्ट्स को तैयार किया था जैसे DigiLocker और BharatNet और इन सभी प्रोजेक्ट की शुरुआत इसी स्टेप से ही की गई थी।
2. Planning (योजना बनाना)
यह जो स्टेप है उसमे प्रोडेक्ट से संबंधित प्रॉपर योजना बनाई जाती है जैसे, यह जो प्रोडक्ट है वह पूरी तरह बन कर कब तक पूरा हो जायेगा, इसको बनाने के लिए कौन – कौन से रिसोर्सेस की आवश्यकता पड़ेगी, और ये जो प्रोडक्ट है उसके हर एक पार्ट को किस तरह मैनेज किया जाएगा।
जब प्रोजेक्ट का प्लान बनाया जाता है तो उस समय यह ध्यान में रखा जाता है की प्रोडक्ट का हर एक फीचर अच्छे से और स्मूथली चले। इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखा जाता है, की प्रोडक्ट को जिस सर्विस को प्रदान करने के लिए बनाया जा रहा है, उसकी हर एक जरूरी रिक्वायरमेंट को अच्छे से कवर करे।
उदहारण:
इस स्टेप का सबसे अच्छा example Aadhaar Project है क्योकि जब इस प्रोजेक्ट को बनाया गया था, तो उस दौरान UIDAI ने पूरे देश के नागरिकों का डाटा इखट्टा करने के लिए सारी अलग – अलग योजना बनाई जिसमें हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर से लेकर मैनपावर भी की हर एक आवश्यकता को पहले से ही तय किया गया था।
3. Development (विकास)
ये जो स्टेप होती है वह किसी भी प्रोजेक्ट की काफी ज्यादा क्रिटिकल और एक्साइटिंग स्टेप होती है, क्योकि यही वो फेज (Phase) है जंहा से किसी भी Digital Product की बिल्डिंग को बनाना शुरू किया जाता है। अब सिर्फ इस प्रोडक्ट के लिए आइडियाज या प्लानिंग ही जरूरी नहीं होती है, बल्कि इसमें उस प्रोजेक्ट का ग्राउंड लेवल से एक्चुअल वर्क शुरू किया जाता है।
इस फेज में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, required hardware setup, नेटवर्क कॉन्फ़िगरेशन आदि के अलाबा भी कई सारे technical tasks पूरा किया जाता है। इस फेज में मुख्य रूप से Tech Teem परफॉर्म करती है जैसे system design करना, front-end और back-end को कॉडिंग करके तैयार करना, और इसके अलाबा यह टीम पूरी application की टेस्टिंग (testing) भी करती है, ताकि जो भी फाइनल product बनकर तैयार हो वह पूरी तरह से user-friendly, smooth और bug-free बन सके।
उदहारण:
BHIM App (Bharat Interface for Money) एक गवर्नमेंट द्वारा बनाया गया एक UPI एप्लीकेशन है जिसको NPCI (National Payments Corporation of India) ने डेवेलोप किया है, जिसमें UPI-based पेमेंट सिस्टम को integrate किया गया है।
4. Implementation (कार्यान्वयन)
जब एप्लीकेशन का डेवलपमेंट पूरा हो जाता है तो उसके बाद जो फेज आता है, उसको ही Implementation phase कहते है। इस फेज में डेवेलोप किए गए एप्लीकेशन को उसे करने से पहले अच्छे से टेस्ट ककिया जाता है।
एप्लीकेशन के जितने भी फीचर होते है उन सभी पर प्रॉपर निगरानी रखी जाती है ताकि इसमें जो भी एरर हो उसका पता लगाकर सॉल्व कर दिया जाए। जब सब कुछ पूरी तरह क्लियर हो जाता है है तो उसको रियल लाइफ में इम्प्लीमेंट किया जाता है।
उदहारण:
ये जो eHospital प्रोजेक्ट है उसको को Ministry of Health और Family Welfare दोनों ने मिलकर लॉन्च किया है, जिसकी सहायता से हर हॉस्पिटल्स को पूरी तरह paperless बनाया जा रहा है और मरीजों का जो भी records उपलब्ध है उसको अब online ही मैनेज किया जा सकता है।
5. Monitoring & Evaluation (निगरानी और मूल्यांकन)
जैसे ही प्रोजेक्ट लाइव हो जाता है यानि इसको लोगो के लिए उपयोग करने के लिए चालू कर दिया जाता है, तो फिर उसके बाद उसकी प्रॉपर मॉनिटरिंग की जाती है ताकि बाद में यह कन्फर्म किया जा सके कि इसके सभी फंक्शन्स स्मूदली और अच्छी तरह से रन कर रहे है की नहीं।
अगर इसमें कभी भी किसी तरह का कोई कोई प्रॉब्लम आता है तो उसे फटाफट कुछ समय बाद सॉल्व किया जाता है, और इसके अलाबा यह भी चेक किया जाता है कि जिस प्रोजेक्ट को बनाया गया है वह कितना एफेक्टिव है।
उदहारण:
अगर हम बात करे इसके उदाहरण की तो इसका सबसे अच्छा उदाहरण PM Kisan Samman Nidhi Yojana है है इस योजना के अंतर्गत सकार द्वारा डायरेक्ट किसानों के अकाउंट में पैसे भेजे जाते है जिसके बाद, सरकार रेगुलरली उनका फीडबैक और ट्रांजैक्शन डेटा चेक करती है ताकि सब कुछ स्मूथ चलता रहे और इस स्कीम का रियल बेनिफिट लोगों तक लगातार पहुंचता रहे।
6. Sustenance (रख-रखाव)
इस फेज पर सिस्टम को मेंटेन करने का काम किया जाता है। यानी सिस्टम में जो भी बग्स मौजूद है उनको फिक्स करना, ज़रूरत के हिसाब से समय – समय पर अपडेट्स देना और अगर कोई नई फीचर चाहिए हो तो उसको भी सिस्टम में ऐड करना। Sustenance का मुख्य उद्देश्य यही होता है कि यह जो सिस्टम है वह लंबे टाइम तक स्मूदली चलता रहे वो भी बिना किसी प्रॉब्लम के।
उदहारण:
बात करे इसके उदाहरण की तो “IRCTC (Indian Railway Catering and Tourism Corporation)” की जो वेबसाइट है उसको समय के साथ – साथ अपडेट किया जाता है ताकि यूज़र को तेज़ और बेहतर एक्सपीरियंस मिल सके, जैसे हर बार एक नया interface तैयार करना या फिर उसमे AI-based recommendation system ऐड करना आदि।
7. Sunset or Re-engineering (समाप्ति या पुनः इंजीनियरिंग)
ये जो फेज (Phase) है वह E-Governance का सबसे लास्ट फेज है। इस फेज का उपयोग तब किया जाता है, जब कोई सिस्टम किसी काम का नहीं रहता या फिर वह आज की टेक्नोलॉजी के मुकाबले काफी ज्यादा पीछे छूट जाता है। फिर इसके बाद इस फेज की सहायता से या तो उस सिस्टम को पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है या फिर उसको री-एंजीनियर किया जाता है।
Re-engineering में पुराने सिस्टम को अपग्रेड किया जाता है या फिर उसको फिरसे पूरा री-डिज़ाइन किया जाता है ताकि वो आज की लेटेस्ट टेक्नोलॉजी के साथ कंपैटिबल हो सके और स्मूथली काम करे।
उदहारण:
MGNREGA MIS Portal जो है उसको समय – समय पर बार – बार Re-engineer किया जाता है ताकि उसमे नए रिपोर्टिंग टूल्स और डेटा visualization modules को integrate किया जा सके।
निष्कर्ष (Conclusion):
तो दोस्तों, E-Governance Life Cycle एक ऐसा पूरा प्रोसेस है जिसकी मदद से सरकार किसी भी डिजिटल सर्विस को step-by-step अच्छे से तैयार कर सकती है, उसको सही तरीके से लागू कर सकती है और फिर समय-समय पर उसे बेहतर भी बना सकती है। इस लाइफ साइकिल से यह पक्का किया जाता है कि डिजिटल प्रोजेक्ट्स यूज़र-फ्रेंडली, भरोसेमंद और लोगों के लिए सच में फायदेमंद बने रहें। इससे न सिर्फ सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और स्पीड आती है, बल्कि आम जनता को भी एक आसान और स्मार्ट अनुभव मिलता है।