नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आप सभी आज के इस ब्लॉग पोस्ट में दोस्तों अगर आप नेटवर्किंग सीख रहे हैं, तो आपने कभी न कभी Routing Information Protocol (RIP) का नाम तो जरूर सुना होगा। ये जो प्रोटोकॉल है वह एक काफी पुराना लेकिन बहुत ज्यादा जरूरी routing protocol है, जिसका काम नेटवर्क में जो डेटा का ट्रांसमिशन होता है उसका रास्ता तय करना होता है।
तो दोस्तों इस आर्टिकल की सहायता से हम RIP को अपनी आसान भाषा में समझने वाले है, ताकि इसकी सहायता से आपकी नेटवर्किंग की जो नॉलेज है वह पहले से और भी कई ज्यादा मजबूत हो सके। तो चलिए शुरू करते है बिना किसी देर के!
Table of Contents
- What is Routing Information Protocol (RIP) in Hindi – (RIP Protocol क्या है?)
- RIP Message Format in Hindi – (RIP संदेश का फॉर्मेट)
- How Routing Information Protocol (RIP) Works in Hindi? – (RIP का कार्य करने का तरीका)
- Types of RIP Timers in Hindi – (RIP Timers के प्रकार)
- Advantages of RIP in Hindi – (RIP के फायदे)
- Disadvantages of RIP in Hindi – (RIP के नुकसान)
- निष्कर्ष (Conclusion)
What is Routing Information Protocol (RIP) in Hindi – (RIP Protocol क्या है?)
Routing Information Protocol, जिसे हम RIP Protocol के नाम से भी जाते है, वह एक ऐसा routing protocol है जो हमेशा यह देखता रहता है कि नेटवर्क में डेटा जो भेजा जा रहा है उसको भेजने का सबसे अच्छा और सबसे सही रास्ता कोण सा रहेगा और यह तय करने के लिए ये “hop count” का उपयोग करता है। यानी जिस डेटा को भेजा जा रहा है वह अपने सोर्स से लेकर डेस्टिनेशन तक कितने routers को पार करेगा, इसके आधार पर रास्ता तय किया जाता है।
RIP Protocol एक तरह का distance vector routing protocol होता है, जो OSI मॉडल की “Network layer” पर काम करता है। ये जो प्रोटोकॉल है उसकी एक सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें ज्यादा से ज्यादा सिर्फ 15 hops की अनुमति है, यानी अगर इसको इससे ज्यादा बड़े नेटवर्क में उपयोग किया जाता है तो यह RIP Protocol उस नेटवर्क में काम नहीं करता। इसलिए इसका खास तौर पर सिर्फ छोटे और मीडियम साइज के नेटवर्क में ही उपयोग किया जाता है।
What is Hop Count in Hindi – (Hop Count क्या होता है?)
Hop count का मतलब है कि जब नेटवर्क किसी तरह के डाटा को भेजा जाता है तो उसके source और destination के बीच कितने routers मौजूद हैं। यानी डेटा को अपने मंज़िल तक पहुँचने में कितने स्टेप्स से होकर गुराना पड़ेगा। जिस रास्ते में सबसे कम hop count होते है, RIP Protocol के अनुसार वही सबसे अच्छा रूट माना जाता है और उसे routing table में रखा जाता है।
RIP में routing loops उत्पन्न न हो इस लिए इसको रोकने के लिए इसमें hop count को लिमिट किया गया है। इसमें ज्यादा से ज्यादा सिर्फ 15 hops ही मौजूद हैं। अगर किसी रूट का hop count 15 से 16 भी हो जाता है, तो उसे network unreachable मान लिया जाता है।
RIP Message Format in Hindi – (RIP संदेश का फॉर्मेट)
जब भी नेटवर्क में RIP Protocol काम करता है, तो वह पहले तय किए गए एक फॉर्मेट में मैसेज भेजता है। जिसके मुख्य रूप से 5 जरूरी हिस्से होते हैं, जो सभी मिलकर एक routing process को सही भेज देते हैं। तो चलिए इन्हें एक – एक करके अपनी आसान भाषा में समझते हैं:
1. Command
इसका काम यह बताना होता है कि जो मैसेज आया है उसका करना क्या है यानी यह मैसेज एक Request है या फिर किसी तरह का Response। आसान शब्दों में कहें तो, इससे यह पता लगया जाता है कि नेटवर्क किसी तरह की जानकारी मांग रहा है या वो किसी तरह की जानकरी को दे रहा है।
2. Version
यह की सहायता से पता चलता है कि इस समय नेटवर्क जिस RIP का उपयोग रहा है वह कौन सा version है, जैसे कि वह RIP v1 है या फिर RIP v2। इसके ालाबा इसकी सहायता से यह भी पता चलता है कि उसमें इस समय कौन कौन से नए features मौजूद हैं।
3. Family
यह फील्ड नेटवर्क के प्रोटोकॉल टाइप को बताने का काम करता है, जैसे कि IP (Internet Protocol)। यानी इसका काम यह सुनिश्चित करना होता है कि नेटवर्क में इस समय किस तरह के पते (Address) का उपयोग हो रहा है।
4. Network Address
यह डाटा को जिस Destination तक जाना है उसके नेटवर्क का IP Address होता है। मतलब यह एक तरह का रास्ता होता है जो यह दिखता है कि पैकेट को किस दिशा में जाना है।
5. Distance (Metric)
यह बताता है कि उस नेटवर्क तक पहुँचने के लिए कितने Hop Count लगेंगे। यानी रास्ते की दूरी क्या है, जिससे राउटर यह तय करता है कि कौन सा रास्ता सबसे छोटा है।
How Routing Information Protocol (RIP) Works in Hindi? – (RIP का कार्य करने का तरीका)
किसी एक नेटवर्क में उपस्थित हर एक राउटर अपनी Routing Table की पूरी जानकारी को अपने पास उपस्थित सभी राउटर्स को हर 30 सेकंड से बाद Broadcast करता रहता है। अगर किसी रूट की जानकारी लगातार 180 सेकंड (यानि 6 बार 30 सेकंड के चक्र में) अपडेट नहीं होती है, तो उस रुट का सबसे पहला राउटर उस रूट को अपनी टेबल से हटा देता है और बाकी के जितने भी नेटवर्क होते है उनको भी इसकी सूचना भेज देता है।
जब भी कोई राउटर किसी तरह की नई Routing जानकारी प्राप्त करता है, तो उसके बाद वह Router अपनी टेबल को उस जानकारी के के हिसाब से अपडेट कर लेता है।
जब भी कोई नया रास्ता पुराने रास्ते के मुकाबले छोटा (यानि कम hop वाला) होता है, तो राउटर उसे अपनी टेबल में तुरंत अपडेट कर लेता है।
Types of RIP Timers in Hindi – (RIP Timers के प्रकार)
- Update Timer: ये वो टाइम होता है जिसमे राऊटर को हर 30 सेकंड में अपने रूटिंग टेबल की जानकारी अपने बगल बाले राउटर्स को भेजता है।
- Invalid Timer: अगर किसी रुट से 180 सेकंड तक किसी भी तरह की कोई भी अपडेट नहीं आता है, तो राउटर उस रूट को Invalid मान लेता है और उसकी hop count को 16 कर देता है आसान शब्दों में कहे तो उसे Unreachable मान लिया जाता है।
- Hold Down Timer: यह वह समय है (डिफॉल्ट 180 सेकंड) जब राउटर किसी रूट को Dead मानने से पहले उसके रिप्लाई का इंतजार करता है।
- Flush Timer: रूट को Invalid घोषित होने के बाद, अगर और 60 सेकंड तक कोई रिस्पॉन्स नहीं मिलता, तो राउटर उसे अपनी टेबल से पूरी तरह हटा देता है। यानि किसी रुट से अपडेट आने का कुल समय = 180 + 60 = 240 सेकंड होता है।
Advantages of RIP in Hindi – (RIP के फायदे)
- RIP को सेटअप और मैनेज करना बहुत ज्यादा आसान होता है, इसलिए यह छोटे और मीडियम आकार के नेटवर्क के लिए बहुत अच्छा है।
- इसे लागू करना काफी आसान है और इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके लिए आपको ज्यादा टेक्निकल नॉलेज की जरूरत नहीं होती।
- जब भी नेटवर्क में किसी तरह का बदलाव होता है तो यह काफी जल्दी अपडेट हो जाता है, जिससे डेटा सही रास्ते से पहुँचता है।
- RIP एक खासियत यह भी है कि अपने आप नियमित रूप से रूटिंग टेबल को अपडेट करता रहता है।
- अगर किसी नेटवर्क में कम बैंडविड्थ होती है तो उसमे भी यह अच्छी तरह से बिना किसी समस्या के काम करता रहता है।
- यह कई तरह के राउटर्स और नेटवर्क डिवाइसेस के साथ आसानी से बिना किसी समस्या के जुड़ जाता है।
Disadvantages of RIP in Hindi – (RIP के नुकसान)
- यह केवल 15 hops तक ही सपोर्ट करता है, इसलिए बड़े नेटवर्क के लिए सही नहीं है।
- कभी – कभी यह दूसरे रूटिंग प्रोटोकॉल्स के मुकाबले थोड़ा धीमा अपडेट होता है।
- इसमें Routing Loops बनने का खतरा रहता है, जिससे नेटवर्क पर असर पड़ता है।
- RIP में एडवांस Load Balancing की सुविधा नहीं होती, जिससे ट्रैफिक disparate हो सकता है।
- इसमें सुरक्षा के लिए कोई विशेष फीचर नहीं है, जिससे यह unsecured हो सकता है।
- बार – बार अपडेट भेजने के कारण यह थोड़ी ज्यादा बैंडविड्थ का उपयोग करता है।’
निष्कर्ष (Conclusion)
तो दोस्तों, इस आर्टिकल में हमने Routing Information Protocol (RIP) को आसान भाषा में विस्तार से समझा। आपने जाना कि RIP एक पुराना लेकिन महत्वपूर्ण प्रोटोकॉल है, जो नेटवर्क में डेटा के लिए सबसे सही और छोटा रास्ता तय करता है। यह छोटे और मीडियम साइज के नेटवर्क के लिए बेहतरीन है, क्योंकि इसे सेटअप और मैनेज करना आसान होता है।
हालांकि, इसके कुछ सीमाएं भी हैं जैसे कि 15 hops की लिमिट और थोड़ी कम सिक्योरिटी, जिस कारण बड़े नेटवर्क में अन्य प्रोटोकॉल का उपयोग किया जाता है। फिर भी, नेटवर्किंग की शुरुआत करने वालों के लिए RIP को समझना बेहद जरूरी है, क्योंकि इससे रूटिंग की बेसिक समझ मजबूत होती है।
आशा करता हूँ कि इस पोस्ट ने आपकी नेटवर्किंग की नॉलेज को और भी मजबूत बनाया होगा। अगर आपको यह जानकारी उपयोगी लगी हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें और नेटवर्किंग से सम्बंधित और भी आर्टिकल्स के लिए हमारे साथ जुड़े रहें।